हवा मेरे घर का चक्कर लगाकर अभी वन में चली जाएगी भेजेगी मन तक बाँस के वन में गुँजाकर बाँसुरी की आवाज एक हो जाएँगे इस तरह घर और वन और मन हवा का आना हवा का जाना गूँजना बंसी का स्वन !
हिंदी समय में भवानीप्रसाद मिश्र की रचनाएँ